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आँखों देखी (भारत पाक युद्ध 1971 ) ( एहसास उनके अल्

आँखों देखी (भारत पाक युद्ध 1971 )
( एहसास उनके अल्फ़ाज मेरे- अविस्मरणीय संस्मरण)

(पूरा संस्मरण केप्शन में पढ़ें)
हमे आपके शौर्य और जज्बे पर गर्व है "बड़े पापा"
लव यू........
जय हिंद।
 ©कुँवर की कलम से.....✍
✒उपरोक्त संस्मरण मेरे बड़े पापा के बताये गई घटना का वास्तविक अंश है। #NojotoQuote संस्मरण-भारत पाक युद्ध 1971
आँखों देखी (भारत पाक युद्ध 1971 )
( एहसास उनके अल्फ़ाज मेरे- अविस्मरणीय संस्मरण)

तारीख 21 अक्टूबर 1971 
समय- शाम 7:30 बजे 
स्थान- बेस कैंप - 19 राजपूताना राइफल्स, नागालैंड 
अचानक इमरजेंसी विसल्ल बजी और हमें ग्राउंड पर इकट्ठा होने के निर्देश मिले। हम सब ग्राउंड पर इकट्ठा हो गये। यँहा हमारे कमांडिंग ऑफिसर ने हमारी बटालियन को धर्मानगर (अगरतला) जाने के निर्देश दिए। हमारी कानवाई तुरंत धर्मानगर के लिए निकल चुकी थी।लगभग डेढ़ महीने तक हम यहीं पर रहे। खुफिया विभाग से सूचना थी कि बांग्लादेश से आतंकी घुसपैठ कर भारत में प्रवेश कर सकते हैं। उस समय पाकिस्तान का बांग्लादेश पर पूर्ण कब्जा था। बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। वँहा पाकिस्तान का सैन्य शासन था, और वहां की आवाम पाकिस्तान के सैन्य शासन और उनके अत्याचारों से काफी परेशान थी। बंगला देश के नौजवान युवक स्वतंत्र बांग्लादेश चाहते थे, इसलिए वे पाकिस्तान सैन्य शासन के खिलाफ बगावत कर चुके थे। बांग्लादेश के वो नवयुवक बार बार हमारे पास आते थे और उन पर होने वाले अत्याचारों की गाथा हमें सुनाते थे। विरोध का स्वर अब उग्र हो चुका था और बांग्लादेश के नव युवकों ने अपनी ही सेना तैयार कर ली थी, जिसे हम लोकल भाषा में रजाकार बुलाते थे। पर दुनिया उसे मुक्ति वाहिनी सेना के नाम से जानती है। डेढ़ महीने तक हमने उन मजबूर नौजवानो की हर संभव सहायता की। उनका एकमात्र उद्देश्य था स्वतंत्र बांग्लादेश की स्थापना और इसके लिए वे भारत से मदद चाहते थे।
आँखों देखी (भारत पाक युद्ध 1971 )
( एहसास उनके अल्फ़ाज मेरे- अविस्मरणीय संस्मरण)

(पूरा संस्मरण केप्शन में पढ़ें)
हमे आपके शौर्य और जज्बे पर गर्व है "बड़े पापा"
लव यू........
जय हिंद।
 ©कुँवर की कलम से.....✍
✒उपरोक्त संस्मरण मेरे बड़े पापा के बताये गई घटना का वास्तविक अंश है। #NojotoQuote संस्मरण-भारत पाक युद्ध 1971
आँखों देखी (भारत पाक युद्ध 1971 )
( एहसास उनके अल्फ़ाज मेरे- अविस्मरणीय संस्मरण)

तारीख 21 अक्टूबर 1971 
समय- शाम 7:30 बजे 
स्थान- बेस कैंप - 19 राजपूताना राइफल्स, नागालैंड 
अचानक इमरजेंसी विसल्ल बजी और हमें ग्राउंड पर इकट्ठा होने के निर्देश मिले। हम सब ग्राउंड पर इकट्ठा हो गये। यँहा हमारे कमांडिंग ऑफिसर ने हमारी बटालियन को धर्मानगर (अगरतला) जाने के निर्देश दिए। हमारी कानवाई तुरंत धर्मानगर के लिए निकल चुकी थी।लगभग डेढ़ महीने तक हम यहीं पर रहे। खुफिया विभाग से सूचना थी कि बांग्लादेश से आतंकी घुसपैठ कर भारत में प्रवेश कर सकते हैं। उस समय पाकिस्तान का बांग्लादेश पर पूर्ण कब्जा था। बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। वँहा पाकिस्तान का सैन्य शासन था, और वहां की आवाम पाकिस्तान के सैन्य शासन और उनके अत्याचारों से काफी परेशान थी। बंगला देश के नौजवान युवक स्वतंत्र बांग्लादेश चाहते थे, इसलिए वे पाकिस्तान सैन्य शासन के खिलाफ बगावत कर चुके थे। बांग्लादेश के वो नवयुवक बार बार हमारे पास आते थे और उन पर होने वाले अत्याचारों की गाथा हमें सुनाते थे। विरोध का स्वर अब उग्र हो चुका था और बांग्लादेश के नव युवकों ने अपनी ही सेना तैयार कर ली थी, जिसे हम लोकल भाषा में रजाकार बुलाते थे। पर दुनिया उसे मुक्ति वाहिनी सेना के नाम से जानती है। डेढ़ महीने तक हमने उन मजबूर नौजवानो की हर संभव सहायता की। उनका एकमात्र उद्देश्य था स्वतंत्र बांग्लादेश की स्थापना और इसके लिए वे भारत से मदद चाहते थे।