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जितना बार भी टूटा हर बार सलिके से जोड़ा गया, कभी क

जितना बार भी टूटा हर बार सलिके से जोड़ा गया, 
कभी कभी रोशनी को फैलाने में पत्थर भी घिसा गया।
हैरान है नूर खुद का देखकर मुझमे होते,
और नादान हमे बदनाम करने क्या क्या तरीके खोजते।
की तुम अब परेशान न हो कोई योजना बनाने में
तेरे सारे गुनाह को देख माफ कर रहा मेरा ख़ुद 
तुझे बचने में।

©Rashim Anugrah
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