बरसे बदरा बूँद-बूँद, गई धरा हरिआय। जब-तक धरा पैर ना धंसे, तन की तपन न जाय।। #धरती पड़ी है सूनी,आकाश गरज रहा, मेघा तेरी एक-एक बूंदों की इन्सान तरस रहा ।