सामाजिक मुद्दा न जाने कब होगा भोर, कुरीतियां लगाएंगी बतन से दौड़ भ्रष्टाचार, बलात्कार, बेरोजगारी नोच रही इंसानी बदन तड़प रहा कर्राह रहा दर्द से मेरा प्यारे बतन का बदन नियम है कानून है मगर खुले आम नजरबंद हैवान है बड़ते अत्याचारों से आज हर कोई परेशान है घूम रहे खुले आम दरिंदे बनाकर काफिले नादान परिंदो पर ही है क्यों रोक टोक दिन और रात रोटी के खातिर,जो गुजार रहे निभाने को दुनिया भर के सारे रीति रिवाज क्यों उन्हीं पर दिए थोप कुर्सी पाकर रुत्वा पाकर बेफिक्र हो जाता है इंसान गली मुहल्ले घूम,खातिर रुतबे के, करते चकबा जाम घूम रहा लेकर जो झंडा इंसाफी, इरादे उसके नाकाम, धर्म तो दूर, विवेकानंद, कलाम की सोच को कर दिया विराम भोर का भी एक दिन होगा आगाज, जब भरेगा हर परिंदा उड़ान लहरा जाते है वो बंजर खेत भी, सधती है हल की कमान #RaysOfHope #सामाजिकमुद्दा sheetal pandya मेरे शब्द Asha ✍