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जाम दर जाम मुलाक़ातें बढ़ी थी, ख़त दर ख़त मुस्कुराहटें

 जाम दर जाम मुलाक़ातें बढ़ी थी,
ख़त दर ख़त मुस्कुराहटें बँटी थी,
जिन लम्हों में हम साथ जिये,
और जिन शामों में हम साथ रहे,
वो शामें ज़रा जज़्बाती थी,

हुआ था जो होना था और हो गया,
तेरी मुस्कुराहटों के किनारे मैं खो गया,
 जाम दर जाम मुलाक़ातें बढ़ी थी,
ख़त दर ख़त मुस्कुराहटें बँटी थी,
जिन लम्हों में हम साथ जिये,
और जिन शामों में हम साथ रहे,
वो शामें ज़रा जज़्बाती थी,

हुआ था जो होना था और हो गया,
तेरी मुस्कुराहटों के किनारे मैं खो गया,
gauravdayam0269

Gaurav Dayam

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