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अपने शौक के लिए भगवान को बदनाम करते हो, स्वयं मद्य

अपने शौक के लिए भगवान को बदनाम करते हो,
स्वयं मद्यपान कर महाकाल का नाम करते हो।।
सारे सावन झूम रहे तुम नशे में,
पूछो तो कहते शिव का प्रसाद है इसमें।।
बहुत शौक है नीलकंठ बनने का तो,
सिंह खाल पहने वन में विहार करो।।
भांग में शिव दिखते है तो,
विष भी पिया करो।।
अपनी सुविधा के अनुसार ईश्वर का भी,
चरित्र वर्णन स्वयं करते हो।।
शर्म करो नशेड़ीयो निराकार है जो,
उसमें धुँए का आकार भरते हो।
महाकाल के नाम से,
गुंडागर्दी और चिलम फूंकते हो।।
तुम क्या जानो महिमा अर्धनारेश्वर की,
चरणों में था स्त्री का स्थान उसे अपने शरीर में शरण दी।।
**यदि कविता मेरी भा जाए तो एक निवेदन मेरा रख लो,
चिलम फूंकती तस्वीरों का बहिष्कार कर कृपानिधि को  वश में कर लो।।** #shiv#ka#charitra
अपने शौक के लिए भगवान को बदनाम करते हो,
स्वयं मद्यपान कर महाकाल का नाम करते हो।।
सारे सावन झूम रहे तुम नशे में,
पूछो तो कहते शिव का प्रसाद है इसमें।।
बहुत शौक है नीलकंठ बनने का तो,
सिंह खाल पहने वन में विहार करो।।
भांग में शिव दिखते है तो,
विष भी पिया करो।।
अपनी सुविधा के अनुसार ईश्वर का भी,
चरित्र वर्णन स्वयं करते हो।।
शर्म करो नशेड़ीयो निराकार है जो,
उसमें धुँए का आकार भरते हो।
महाकाल के नाम से,
गुंडागर्दी और चिलम फूंकते हो।।
तुम क्या जानो महिमा अर्धनारेश्वर की,
चरणों में था स्त्री का स्थान उसे अपने शरीर में शरण दी।।
**यदि कविता मेरी भा जाए तो एक निवेदन मेरा रख लो,
चिलम फूंकती तस्वीरों का बहिष्कार कर कृपानिधि को  वश में कर लो।।** #shiv#ka#charitra