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इल्जाम क्या लगा रहे हो, दोस्तों, दिल में जख्म देक


इल्जाम क्या लगा रहे हो, दोस्तों,
दिल में जख्म देकर क्यों जला रहे हो?
शायरी के रंग में रंग लो इल्जाम को,
क्योंकि कलम ही तो हैं जो अदालत का काम करे।

जुबां पर तिरछी बातें और इल्जाम,
जीने की आदत बना दी इन्सान को सम्मान।
लोग तो कहते हैं कुछ भी, कहाँ उबरेगा?
दिल में अगर हौंसला हो, तो कुछ भी हो सकेगा।

शायरी के रूप में लिखते हैं इल्जाम,
हकीकत तो ये हैं केवल ख्वाबों का एक राम।
कुछ बदनामी और थोड़ा गर्व दोस्तों,
हौसला रखो, बाकी सब मिटाएगा वक्त।

इल्जाम की चिंगारी में जल रहे हो,
मगर उससे भी उच्च सोच का तजुर्बा ले रहे हो।
जब लोग बोलेंगे आपस में गलत,
आप अपनी सोच में सबसे अलग हो जाएंगे।

इल्जाम लगाने वाले बहुत मिलेंगे यहाँ,
मगर खुदा के बदले एक भी नहीं मिलेगा।
इल्जाम तो लगाने वाले भी होंगे जरूर,
पर शायरी से ही जीने का खजाना मिलेगा।

©aditi jain
  #इल्जाम  Chouhan Saab Natkhat Krishna Madhusudan Shrivastava Senty Poet AK Haryanvi