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6. आज नवरात्र का 6 वां दिन और संख्या - 4 के बारे म

6. आज नवरात्र का 6 वां दिन और संख्या - 4 के बारे में
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कालचक्र या समय जो सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, 4 भागों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग ) के नाम से जाना गया। जगत का वितरण भी मुख्य रूप से 4 दिशाओं (उत्तर - दक्षिण, पूर्व- पश्चिम) में हैं। संसार का प्राचीनतम साहित्य हम वेदों को मानते हैं।वेदों की संख्या भी 4 है। वैदिक जीवनशैली 4 आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ) के अनुरूप है। समाज को 4 वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ) के रुप में व्यवस्थित किया गया। जीवन के उद्देश्यों की संख्या भी 4 है, हम उन्हें चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) मानते हैं। प्रेम और शक्ति के मिले जुले स्वरूप माता कात्यायनी के दर्शन
कैप्शन में--- 6. आज नवरात्र का 6 वां दिन और संख्या - 4 के बारे में
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कालचक्र या समय जो सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, 4 भागों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग ) के नाम से जाना गया। जगत का वितरण भी मुख्य रूप से 4 दिशाओं (उत्तर - दक्षिण, पूर्व- पश्चिम) में हैं। संसार का प्राचीनतम साहित्य हम वेदों को मानते हैं।वेदों की संख्या भी 4 है। वैदिक जीवनशैली 4 आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ) के अनुरूप है। समाज को 4 वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ) के रुप में व्यवस्थित किया गया। जीवन के उद्देश्यों की संख्या भी 4 है, हम उन्हें चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) मानते हैं। जीवन की मूल इच्छायें भी चार हैं - आयु, विद्या, यश और बल। तीर्थाटन करने के लिए देश में 4 ही धाम (बद्रीनाथ उत्तराखंड, द्वारका गुजरात,जगन्नाथ पुरी उड़ीसा और रामेश्वरम तमिलनाडू) हैं। राजस्थानी चित्रकला शैली को भी 4 भागों - मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती और ढूंढाड़ी के तौर पर पहचान मिली।हमारे लोकनृत्य भी 4 ( क्षेत्रीय लोकनृत्य, व्यावसायिक लोकनृत्य, जातीय और जनजातीय लोकनृत्य ) हैं। हम स्थापत्य (नगर, महल, हवेलियाँ और छतरियाँ ) को भी 4 ही तरह से देखते हैं। कहते हैं कि अश्विन कृष्ण चतुर्थी को माता कात्यायनी ने ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लिया और शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमीं को भोग ग्रहण कर दशमीं को महिषासुर का वध कर महिषासुरमर्दिनी बनीं। ये भी कहा जाता है कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए माता कात्यायनी का आवाहन किया तबसे वृन्दावनेश्वरी  कहलाईं।वे ब्रज मण्डल की अधिष्ठात्री देवी हैं। प्रेम और शक्ति का साकार स्वरूप माता कात्यायनी साक्षात गौरी' हैं। इसीलिए जिन कन्याओ के विवाह में विलम्ब हो रहा हो,उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए,जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है। विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र--
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे   कुरुते नम:॥

भगवान श्री कृष्ण और गोपियों के साथ राधा जी का प्रेम जो वेद और शास्त्रों के ज्ञाता उद्धव जी पर भारी पड़ गया वह माता कात्यायनी का ही आशीर्वाद था।
6. आज नवरात्र का 6 वां दिन और संख्या - 4 के बारे में
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कालचक्र या समय जो सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, 4 भागों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग ) के नाम से जाना गया। जगत का वितरण भी मुख्य रूप से 4 दिशाओं (उत्तर - दक्षिण, पूर्व- पश्चिम) में हैं। संसार का प्राचीनतम साहित्य हम वेदों को मानते हैं।वेदों की संख्या भी 4 है। वैदिक जीवनशैली 4 आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ) के अनुरूप है। समाज को 4 वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ) के रुप में व्यवस्थित किया गया। जीवन के उद्देश्यों की संख्या भी 4 है, हम उन्हें चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) मानते हैं। प्रेम और शक्ति के मिले जुले स्वरूप माता कात्यायनी के दर्शन
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कालचक्र या समय जो सम्पूर्ण सृष्टि का नियंता है, 4 भागों (सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग ) के नाम से जाना गया। जगत का वितरण भी मुख्य रूप से 4 दिशाओं (उत्तर - दक्षिण, पूर्व- पश्चिम) में हैं। संसार का प्राचीनतम साहित्य हम वेदों को मानते हैं।वेदों की संख्या भी 4 है। वैदिक जीवनशैली 4 आश्रम (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ) के अनुरूप है। समाज को 4 वर्णों ( ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ) के रुप में व्यवस्थित किया गया। जीवन के उद्देश्यों की संख्या भी 4 है, हम उन्हें चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ) मानते हैं। जीवन की मूल इच्छायें भी चार हैं - आयु, विद्या, यश और बल। तीर्थाटन करने के लिए देश में 4 ही धाम (बद्रीनाथ उत्तराखंड, द्वारका गुजरात,जगन्नाथ पुरी उड़ीसा और रामेश्वरम तमिलनाडू) हैं। राजस्थानी चित्रकला शैली को भी 4 भागों - मेवाड़, मारवाड़, हाड़ौती और ढूंढाड़ी के तौर पर पहचान मिली।हमारे लोकनृत्य भी 4 ( क्षेत्रीय लोकनृत्य, व्यावसायिक लोकनृत्य, जातीय और जनजातीय लोकनृत्य ) हैं। हम स्थापत्य (नगर, महल, हवेलियाँ और छतरियाँ ) को भी 4 ही तरह से देखते हैं। कहते हैं कि अश्विन कृष्ण चतुर्थी को माता कात्यायनी ने ऋषि कात्यायन के घर में जन्म लिया और शुक्लपक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमीं को भोग ग्रहण कर दशमीं को महिषासुर का वध कर महिषासुरमर्दिनी बनीं। ये भी कहा जाता है कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए माता कात्यायनी का आवाहन किया तबसे वृन्दावनेश्वरी  कहलाईं।वे ब्रज मण्डल की अधिष्ठात्री देवी हैं। प्रेम और शक्ति का साकार स्वरूप माता कात्यायनी साक्षात गौरी' हैं। इसीलिए जिन कन्याओ के विवाह में विलम्ब हो रहा हो,उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए,जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है। विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र--
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे   कुरुते नम:॥

भगवान श्री कृष्ण और गोपियों के साथ राधा जी का प्रेम जो वेद और शास्त्रों के ज्ञाता उद्धव जी पर भारी पड़ गया वह माता कात्यायनी का ही आशीर्वाद था।