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कई सवाल छोड़ गई फिर इक़ रात ढलते हुए अकेले अब ऊब गए

 कई सवाल छोड़ गई फिर इक़ रात ढलते हुए
अकेले अब ऊब गए हैं अलाव भी जलते हुए
.
जो क़ायदों से ही बैठे हैं क़ायदों के ख़िलाफ़
वक़्त लम्बा हुआ सड़कों पे उन्हें पलते हुए
.
ज़मीन से जुड़े हैं जो वो ज़मीन पे ही बैठे हैं
यूं ही नही बैठे है रहना उनको हाथ मलते हुए
.
जम्हूरियत की नुमाइश से कदम जो रुक गए
वो क़ीमती रास्ते तरक्की पे हैं तेज चलते हुए
.
शहरों में आजकल गरमागरम ख़बर चलती है
क्या अच्छे लगते हैं इंसान जाड़े में गलते हुए
.


 जम्हूरियत
 कई सवाल छोड़ गई फिर इक़ रात ढलते हुए
अकेले अब ऊब गए हैं अलाव भी जलते हुए
.
जो क़ायदों से ही बैठे हैं क़ायदों के ख़िलाफ़
वक़्त लम्बा हुआ सड़कों पे उन्हें पलते हुए
.
ज़मीन से जुड़े हैं जो वो ज़मीन पे ही बैठे हैं
यूं ही नही बैठे है रहना उनको हाथ मलते हुए
.
जम्हूरियत की नुमाइश से कदम जो रुक गए
वो क़ीमती रास्ते तरक्की पे हैं तेज चलते हुए
.
शहरों में आजकल गरमागरम ख़बर चलती है
क्या अच्छे लगते हैं इंसान जाड़े में गलते हुए
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 जम्हूरियत