मैं अकेला ताकता रहता हूँ जमीं की तरफ जब होता हूँ अकेला तो नापता रहता हूँ नदियों की गहराईयों को और देखता रहता हूं उस विशाल आसमां को जो पूरे ब्रह्मांड को खुद में है समेटे हुए मैं देखता रहता हूँ उस अंधेरे को जहाँ वर्षो से एक सन्नटा है जहाँ झींगुरों की आबाज़ और हवा की सनसनाहट के अलाबा कोई नही आता जाता है बिल्कुल उस वीरान खण्डर की तरह जो कई सालों से बंद है लेकिन वो मुझे प्रिय है क्योकि मुझे वो पसन्द है रात का वो अंधेरा और उसकी गहराई जो बिल्कुल मेरे ह्रदय की की तरह पूरी समा में है समाई लगता है बिल्कुल जैसे हो मेरे हो ह्रदय की खाई मैं अकेला ताकता रहता हूँ जमीं की तरफ जब होता हूँ अकेला तो नापता रहता हूँ नदियों की गहराईयों को और देखता रहता हूं उस विशाल आसमां को जो पूरे ब्रह्मांड को खुद में है समेटे हुए मैं देखता रहता हूँ