वैद्य की आवश्यकता
एक महात्मा अपनी दयालुता के कारण सदा दुखी और पापी कहे जाने वाले अपराधियों से हर समय घिरे रहते थे। यहाँ तक कि जब वे भोजन किया करते थे, तब भी बहुत से पतित लोग उन्हें घेरे रहते थे। एक बार वे बहुत से नीच जाति के और पापी-पतितों के साथ बैठे भोजन कर रहे थे। यह देखकर एक विरोधी ने उनके शिष्य से कहा- "तेरे गुरु, जिसे तुम लोग भगवान की तरह पूजते हो, इस प्रकार नीचों और पतितों से प्रेम करता है, उनके साथ बैठा भोजन पा रहा है। फिर भला तुम लोग किस प्रकार आशा कर सकते हो कि हम लोग उसका आदर करें और उसकी बात माने!
महात्मा ने विरोधी की बात सुन ली और विनम्रता पूर्वक उत्तर दिया- "भाई वैद्य की आवश्यकता रोगियों को होती है, निरोगों को नहीं। धर्म की आवश्यकता पापियों को होती है, उनको नहीं जो पहले से ही अपने को धार्मिक समझते हैं। मैं धर्मात्माओं का नहीं पापियों का हित करना चाहता हूँ। उन्हें मेरी बहुत जरूरत है।"
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