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Read in caption ©Ashkar महिलाएँ भी महिलाओं की त

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©Ashkar
  महिलाएँ भी महिलाओं की तरक्की में बाधक बनती हैं। या ये कहूँ कि महिलाएँ ही महिलाओं की तरक्की में बाधक बनती है। महिलाओं के जीवन में बाधाएँ आना उसी दिन से शुरू हो जाती है जिस दिन वे जन्म लेती हैं। जन्म देने वाले माता-पिता को शुभकामनाएँ देने वाले लोगों में जो महिलाएँ होती है वो शुभकामनाएँ कम और अफ़सोस ज्यादा जता कर जाती है लड़का हो जाता तो ज्यादा अच्छा होता। ये बात ख़ुद उन माता-पिता के मन में डाल देती हैं और फिर ख़ुद ही तसल्ली देती हैं कोई बात नहीं कुछ ना होने से तो अच्छा बेटी हो गई। आजकल बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं। ऐसी बातें करके माता-पिता की खुशियों को कम कर जाती हैं। फिर बारी आती है माँ की जैसे जैसे बेटी बड़ी होती है तो उसे माँ समाज के तौर-तरीकों से चलना सिखाती है, तुम्हें घर के काम आना चाहिए, तुम लड़की हो, लड़की ऐसे नहीं रहती, हमारा समाज ऐसा है, नहीं तुम्हें ऐसे रहना चाहिए फलाना बोलेंगे, बातें बनाएँगे, तुम ऐसे नहीं रहोगी तो तुम्हारी शादी नहीं होगी, शादी के बाद हम तुम्हारे नखरे नहीं उठाने नहीं आएँगे। और शादी ये शब्द उस लड़की को बार बार हर बार यही बताया जाता है कि शादी होना ही सबकुछ है। उसे ये माँ ये नहीं बताती की ज़िंदगी जीने के लिए क्या ज़रूरी है, तुम्हें कुछ उन लोगों के मुँह बंद करना है जो कहते है तुम लड़की हो, माँ उसे कभी ये नहीं कहती कि मेरी इच्छाओं को मैं पूरा नहीं कर पाई सिर्फ इसी बात से कि समाज क्या कहेगा। तो तुम समाज की फ़िक्र किए बिना जिओ अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से, माँ या कोई भी महिला ये नहीं सोचती की जो हमने सहा कभी वो दूसरी किसी महिला को ना सहना पड़े। महिलाएँ ये कभी नहीं सोचती कि हमारे पीठ पीछे हमारी बुराई करके हमारे चरित्र पर टिप्पणी करने वाली महिलाओं में से एक मैं क्यों बनूँ? क्यों कोई महिला ये नहीं सोचती कि ये समाज हमारी सोच से बनता है? क्यों कोई महिला किसी दूसरी महिला का साथ देने के बजाए उस महिला के चरित्र का आकलन करने लग जाती है? जब कोई पुरुष किसी महिला पर कोई टिप्पणी कसता है तो क्यों कोई महिला उस पुरुष का विरोध करने के बजाए उस महिला के चरित्र पर उँगली उठाती है? सोचना कभी बैठकर जो कुछ महिलाओं के साथ होता है क्या वो पुरुष करते है या महिला। इस सवाल का जवाब आपके पास ही है।

अश्कार

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theheartthoughts1851

Ashkar

New Creator

महिलाएँ भी महिलाओं की तरक्की में बाधक बनती हैं। या ये कहूँ कि महिलाएँ ही महिलाओं की तरक्की में बाधक बनती है। महिलाओं के जीवन में बाधाएँ आना उसी दिन से शुरू हो जाती है जिस दिन वे जन्म लेती हैं। जन्म देने वाले माता-पिता को शुभकामनाएँ देने वाले लोगों में जो महिलाएँ होती है वो शुभकामनाएँ कम और अफ़सोस ज्यादा जता कर जाती है लड़का हो जाता तो ज्यादा अच्छा होता। ये बात ख़ुद उन माता-पिता के मन में डाल देती हैं और फिर ख़ुद ही तसल्ली देती हैं कोई बात नहीं कुछ ना होने से तो अच्छा बेटी हो गई। आजकल बेटियाँ भी बेटों से कम नहीं। ऐसी बातें करके माता-पिता की खुशियों को कम कर जाती हैं। फिर बारी आती है माँ की जैसे जैसे बेटी बड़ी होती है तो उसे माँ समाज के तौर-तरीकों से चलना सिखाती है, तुम्हें घर के काम आना चाहिए, तुम लड़की हो, लड़की ऐसे नहीं रहती, हमारा समाज ऐसा है, नहीं तुम्हें ऐसे रहना चाहिए फलाना बोलेंगे, बातें बनाएँगे, तुम ऐसे नहीं रहोगी तो तुम्हारी शादी नहीं होगी, शादी के बाद हम तुम्हारे नखरे नहीं उठाने नहीं आएँगे। और शादी ये शब्द उस लड़की को बार बार हर बार यही बताया जाता है कि शादी होना ही सबकुछ है। उसे ये माँ ये नहीं बताती की ज़िंदगी जीने के लिए क्या ज़रूरी है, तुम्हें कुछ उन लोगों के मुँह बंद करना है जो कहते है तुम लड़की हो, माँ उसे कभी ये नहीं कहती कि मेरी इच्छाओं को मैं पूरा नहीं कर पाई सिर्फ इसी बात से कि समाज क्या कहेगा। तो तुम समाज की फ़िक्र किए बिना जिओ अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से, माँ या कोई भी महिला ये नहीं सोचती की जो हमने सहा कभी वो दूसरी किसी महिला को ना सहना पड़े। महिलाएँ ये कभी नहीं सोचती कि हमारे पीठ पीछे हमारी बुराई करके हमारे चरित्र पर टिप्पणी करने वाली महिलाओं में से एक मैं क्यों बनूँ? क्यों कोई महिला ये नहीं सोचती कि ये समाज हमारी सोच से बनता है? क्यों कोई महिला किसी दूसरी महिला का साथ देने के बजाए उस महिला के चरित्र का आकलन करने लग जाती है? जब कोई पुरुष किसी महिला पर कोई टिप्पणी कसता है तो क्यों कोई महिला उस पुरुष का विरोध करने के बजाए उस महिला के चरित्र पर उँगली उठाती है? सोचना कभी बैठकर जो कुछ महिलाओं के साथ होता है क्या वो पुरुष करते है या महिला। इस सवाल का जवाब आपके पास ही है। अश्कार #kavi #kavita life #Women #artical #writer #विचार

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