मैं शून्य हूं । बहुत दिनों से मच रहा है एक बात का बवंडर मेरे मन में की क्यूं कोई नई बात नहीं है मेरे जीवन में जीवन है तो कुछ नई बात होनी चाहिए इतना कुछ खोने के बाद ,अब बात नई होनी चाहिए क्यूं नहीं हो रही है कोई नई बात मेरे जीवन में क्या मैं शून्य हूं। पर खुद में शून्य होना भी तो एक बात है हां मैं शून्य हूं मगर परम शून्य नहीं जो एक खास तापमान के बाद नीचे आ जाऊं जिसके दायें लग जाऊं तो उसके महत्व को बढ़ा देता हूं और जिसके बायें लग जाऊं उसके महत्व को घटा भी सकता हूं पर क्या मैं लोगों की सोभा बढ़ाने की वस्तु हूं जिसे लोग अपने हिसाब से बायें और दायें रखते हैं यानी की मैं दूसरो के इशारों पे नाचने वाला शून्य हूं नहीं मैं नाचने वाला शून्य नहीं हूं अगर लोग स्वार्थ से मेरे साथ जुड़ेंगे तो मैं उनके स्वार्थ का गुणज बन जाऊंगा और यदि निस्वार्थ जुड़ेंगे तो भाग बन उनको अनंत बना दूंगा क्योंकि मैं शून्य हूं ___अभिनय विकास