हाल दिल का बदल भी सकता है राज़ अपने उगल भी सकता है जाँ निसारों में मेरे कोई तो मेरी शोहरत पे जल भी सकता है ऐ बगूलो ना फूलो तुम इतना रुख़ हवा का बदल भी सकता है बाहिमी गुफ़्तगू से ही कुछ तो कोई रस्ता निकल भी सकता है बन संवर कर ना सामने आओ दिल हमारा फ़िसल भी सकता है तेरे हमराह देख कर मुझ को कोई बस्ती में जल भी सकता है ये जवानी का वक़्त है अकरम पाऊँ तेरा फ़िसल भी सकता है [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]