मयस्सर रास्तों में भी सफ़र अनजाना लगता है अगर घर लौट भी आऊँ तो घर अनजाना लगता है रफाक़त की घड़ी में भी मिटे ना फासले उससे न जाने क्यूँ मुझे वो इस कदर अनजाना लगता है वही गलियाँ, वही रंगत, वही मैं हूँ, वही तुम हो यही मंजर न जाने क्यूँ मगर अनजाना लगता है कभी जो झाँकती हूँ मैं दरीचों से ज़रा नीचे यहां का हर गुलिस्ताँ, हर शजर अनजाना लगता है मेरी अपनी कहानी के किसी किरदार सा है वो कि जिससे राब्तों का अब असर अनजाना लगता है मशालों में सुलगती हैं शबे रानाइयाँ अक्सर सहर के वक़्त उगता इक शरर अनजाना लगता है वो तो हर दिन बदलता है लिबासों की तरह शक्लें 'शिफा' तू भूल जा उसको अगर अनजाना लगता है.. #anjaana