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जी हां रोया उस रात बहुत था मैं जी हां रोया उस रात

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
 जब घर छोड़कर हॉस्टल में आया था मैं ।

जो सपन देखे थे मेने 
              एक झटके मे  शीण हो गए,
माँ की आंखों में आँसू देख
             दिल के हर कोने नम हो गया ।
पापा की आवाज में पहली बार 
              मेने वह नमी पाई थी, 
जब मुड़ कर देखा मैंने तो
            'शायद' उनकी आंख भी भर आई थी ।1।
    
जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।

जब कदम रखा कमरे में मैंने 
              तो एक अजीब सी घबराहट आई थी ,
शायद मम्मी पापा के जाने की 
             मुझे ये आहट आई थी ।
जब मुड़कर देखा मैंने 
             तो ना कोई आगे पीछे था,
बस एक मायूस चेहरा और 
            सामने 'दीवारों' का पहरा था।2।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं।

भरे गले से मैंने अपने आप को 
            ठीक बताया था,
उस शाम पहली बार 
           जब फोन मां का आया था।
फोन के कटते  ही में
           जोर-जोर से मैं रोने लगा ,
और कुछ समय बाद गर्मी में 
          'कंबल' ओढ़ के फिर रोने लगा ।3।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।।
             
            ##अक्षत 'पारस' जैन## hostel life
जी हां रोया उस रात बहुत था मैं

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
 जब घर छोड़कर हॉस्टल में आया था मैं ।

जो सपन देखे थे मेने 
              एक झटके मे  शीण हो गए,
माँ की आंखों में आँसू देख
             दिल के हर कोने नम हो गया ।
पापा की आवाज में पहली बार 
              मेने वह नमी पाई थी, 
जब मुड़ कर देखा मैंने तो
            'शायद' उनकी आंख भी भर आई थी ।1।
    
जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।

जब कदम रखा कमरे में मैंने 
              तो एक अजीब सी घबराहट आई थी ,
शायद मम्मी पापा के जाने की 
             मुझे ये आहट आई थी ।
जब मुड़कर देखा मैंने 
             तो ना कोई आगे पीछे था,
बस एक मायूस चेहरा और 
            सामने 'दीवारों' का पहरा था।2।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं।

भरे गले से मैंने अपने आप को 
            ठीक बताया था,
उस शाम पहली बार 
           जब फोन मां का आया था।
फोन के कटते  ही में
           जोर-जोर से मैं रोने लगा ,
और कुछ समय बाद गर्मी में 
          'कंबल' ओढ़ के फिर रोने लगा ।3।

जी हां रोया उस रात बहुत था मैं,
जब घर छोड़कर ,हॉस्टल में आया था मैं ।।
             
            ##अक्षत 'पारस' जैन## hostel life