वक़्त की स्याही से लिखी स्याह खौफ़ रातें न कभी मिटा सकूँगी, समझ के तक़दीर अपनी नाइंसाफियाँ उनकी मैं न भुला सकूँगी। क़ामिल बातें क़ामिल मुलाक़ातें मग़र लूटने का हुनर पूरा था, ख़ोखला किया था रूह को मैं जिस्म पे कोई दाग़ न दिखा सकूँगी। क्यों ज़ुबाँ ये बक्शी मुझे जब हक़ के लिए मुँह खोलना गुनाह था, दर्द में चीखना बिलखना मना, मैं खाली सिसकियाँ न लगा सकूँगी। मुझसे भीख न माँगना और दुहाई न देना परिवार लाज मर्यादा की, बर्बाद, पामाल हर फ़रियाद कर दूँगी ख़ुद को और न झुका सकूँगी। इतनी उम्मीदे न बाँधो मुझसे क्यों मैं ही अपनी सारी ज़िन्दगी ख़ाक करुँ, ख़ुद से मुँह मोड़ मैं आँसू अपने पोछ के हरबार सबको न हँसा सकूँगी। इस युग में ख़ुद को मैं ही बचाऊँगी गिड़गिड़ाऊँगी न गुहार लगाऊँगी, आऊँगी न पास तुम्हारे किसी रिश्ते के हवाले से स्वाभिमान न डिगा सकूँगी। ♥️ Challenge-918 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।