मुहब्बत के खत में, वो सलाम किस का था जब था नहीं मैं तो वो काम किस का था बेवफ़ाई ऐसी भी होगी हमने सोचा न था ख़ून से जो लिक्खा, वो कलाम किस का था ढूँढ ही लाया वो आख़िर क़ातिल को मेरे कोई तो आए सामने, वो इनाम किस का था नहीं भूलूँगा वो ख़ूबसूरत शाम वस्ल की मैं लरज़ती ज़ुबाँ पर, वो नाम किस का था साक़ी ने मुझे पैमानें से जो पिलाया जाम सामने चेहरा वो सुब्ह-ओ-शाम किस का था 'सफ़र' की बेरुख़ी से न इज़्तिराब हुआ करो पढ़ कर देखो ग़ज़ल, वो पयाम किस का था 🔹जब था नहीं मैं तो वो काम किस का था🔹 इज़्तिरब- बेचैन पयाम- संदेश ♥️ Challenge-590 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :)