मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गई.! ऑफिस की खिड़की से जब देखा मैंने, मौसम की पहली बरसात को..! काले बादल की गरज पर, नाचते बूंदों की बारात को..! एक बच्चा घर से निकलकर भागा था भीगने बाहर..!रोका बड़प्पन ने मेरे, पकड़ कर उसके हाथ को। बारिश और मेरे बचपन के बीच, एक उम्र की दीवार खड़ी हो गई...! लगता है मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गई...! वह बूंदे कांच की दीवार पर खटखटा रही थी... मैं उनके संग खेलता था कभी,इसलिए ओ बुला रही थी..! पर तब मैं छोटा था, और यह बातें बड़ी थी..,तब घर वक्त पर जाने की किसे पड़ी थी। अब बारिश पहले राहत, फिर आफत बन जाती है..,जो गरज पहले लुभाती थी, अब वही डराती है..! मैं डरपोक हो गया और बदनाम सावन की झड़ी हो गई...,लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गई। जिस पानी में छपाके लगाते उस पानी में अब कीटाणु दिखने लगे...खुद से ज्यादा फिक्र है कि लैपटॉप भीगने न लगे.. स्कूल में दुआ करते थे की बारिश बरसे बेहिसाब, तो स्कूल की छुट्टी हो जाए...! अभी तो डर यह है कि कल ऑफिस से छुट्टी ना हो जाए। सावन ,जब चाय और पकौडो की सोहबत में मजे से बीतता था.. वह दौर वह घड़ी बड़े होते होते कहीं खो गई..! लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गई....! #mausum