बसंत पंचमी आयी जीवन में बनकर नयी दुल्हन प्रेम बरसाती यौवन महकाती कई आभूषण और श्रृंगार में सुसज्जित होकर बिखरेती अपनी छटा,, कण कण में अपनी खुशबू से प्रकृति को अपने आगोश में लेती,, पीली सरसों के फूलों से गुनगुनाते उनके ऊपर भंवरों तक,, खिलती आम की मंजरी से सरस्वती की वीणा तक,, पत्तों को छूकर जाती नई कोपलों में जीवन भरती ठंडी पुरवाई तक,, प्रकृति लेती नव सिंगार भर देती पग पग में प्यार,,