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मैं सुधर जाऊंगी (कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे

मैं सुधर जाऊंगी

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है।
हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं..
औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये
मैं सुधर जाऊंगी

(कृप्या अनुशीर्षक में पढ़ें) हमारे समाज के दो हिस्से हैं.. एक हिस्से में औरतों को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जाती है, और एक हिस्सा कमजोर औरतों को ही औरत होने का दर्जा देता है।
हम सभी एक स्वतंत्र विचार वाली और आत्मनिर्भर औरत को स्वीकार कर ही नहीं पाते, क्योंकि हमारी सोच में औरत की छवि एक दबी हुई आवाज़ की तरह है। जिसे हम सुनकर भी अनसुना कर देते हैं। औरत को हम या तो दायित्वों में डाल व्यस्त कर देते हैं या मनोरंजन के साधन की तरह इस्तेमाल कर लेते हैं..
औरतों की कमजोरी की वज़ह क्या है..? दरअसल वज़ह हम खुद हैं.. क्योंकि हम उन्हें ये