थे कर रहे भगवान शयन माँ प्रहुभि तब आती हैं, हाथ जोड़कर,अश्रुपूरित नयनों से, अपनी व्यथा सुनाती हैं। हे! जगत ईश, हे! करुणावतार, हे! प्रतिपालक, हे! जगदाधार हे!अखिलेश्वर मेरी पीड़ा पर दृष्टि करो, केवल पूरी यह इष्टि करो। For full poem Go To kathakrishnaki.blogspot.com #gif Krishna Katha