ख़्वाहिश मेरी बिगड़े कभी तेरी कार और खड़ी मिले तू बेबस सी किसी रास्ते पर कपड़े हो रहे हों मैले तेरे और उजड़ा सा मुंह.... कुछ काला-काला लिपिस्टिक की कोर और काज़ल की डोर हदें तोड़ रही हों अपनी