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ख़्वाहिश मेरी बिगड़े कभी तेरी कार और खड़ी मिले तू

 ख़्वाहिश मेरी 

बिगड़े कभी तेरी कार और खड़ी मिले तू 
बेबस सी किसी रास्ते पर
कपड़े हो रहे हों मैले तेरे और 
उजड़ा सा मुंह.... कुछ काला-काला 
लिपिस्टिक की कोर और काज़ल की डोर 
हदें तोड़ रही हों अपनी
 ख़्वाहिश मेरी 

बिगड़े कभी तेरी कार और खड़ी मिले तू 
बेबस सी किसी रास्ते पर
कपड़े हो रहे हों मैले तेरे और 
उजड़ा सा मुंह.... कुछ काला-काला 
लिपिस्टिक की कोर और काज़ल की डोर 
हदें तोड़ रही हों अपनी