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आज-कल ये खुदा मंहगी से मंहगी घड़ी सभी को दो मगर द

आज-कल ये खुदा मंहगी से मंहगी घड़ी सभी को 
दो 
मगर दुःखों बाली घड़ी किसी को भी
ना दो 
उनकी तलाश इन 
आँखों को 
By अरुण चक्रवर्ती
आज-कल ये खुदा मंहगी से मंहगी घड़ी सभी को 
दो 
मगर दुःखों बाली घड़ी किसी को भी
ना दो 
उनकी तलाश इन 
आँखों को 
By अरुण चक्रवर्ती