वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम, या कभी दो बात कहने तो नहीं पर कुछ नहीं तो मुस्कुराने आओगे तुम मैं नहीं हूँ तुम नहीं हो तो यहाँ फिर आज किसकी आँख का जल में विलय है, रो दिए हैं कुछ पुराने पत्र यानी ये हमारे प्रेम का अंतिम समय है इस विरह की भी घड़ी में सोचता हूँ क्या मिलन के गीत गाने आओगे तुम वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम ये ज़माने को पता है दूर हो पर ये किसे आभास है के तुम यहीं हो, सिर्फ उतना याद है के मैं कहाँ हूँ और इतना याद है के तुम नहीं हो ये बताओ तो सही मेरे नहीं पर गीत अपने गुनगुनाने आओगे तुम? वेदना के गीत पूरे हो रहे हैं लग रहा है सुर सजाने आओगे तुम ठाकुर साहब......