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बीज बोने और फल आने में एक काल चाहिए। प्रतीक्षा के

बीज बोने और फल आने में
एक काल चाहिए।
प्रतीक्षा के लिए धैर्य और
पालन-पोषण के लिए
परिश्रम और स्नेह चाहिए,
प्रार्थना चाहिए।
माननीय प्रधामंत्री जी ने पूरे देश के
नागरिकों की कोरोना विषाणु से
सुरक्षा के लिए इसी उम्मीद के साथ
लॉक डाउन के माध्यम से
22 मार्च को इसकी नींव रखी। सुप्रभातम साथियो मैं शब्दों के साथ न्याय करने की कोशिश करूँगा। समूचा विश्व इस समय #कोरोना_वायरस की चपेट में है। #विज्ञान_का_ताण्डव  कहें इसे या प्रकृति का कोप इसने मानव जीवन की गति को प्रभावित किया है। भारत सरकार और देश के कई राज्यों ने तत्परता दिखाकर देशभर में 500 संक्रमित लोगों के सामने आते ही #21_दिन_का_लॉक_डाउन घोषित कर दिया। अब पूरा देश कोरोना महामारी से युद्ध करने हेतु तैयार हो रहा था। लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में हमने विषाणु की फैलाव श्रंखला को तोड़ा। हमारा देश इस महामारी को बहुत जल्द ही नियंत्रण में ले लेता अगर लॉक डाउन की अनुपालना पूरे अनुशासन के साथ की गई होती। किंतु इन लोगों ने इसे महज़ राजनीति से जोड़ इसका मज़ाक बनाया और लॉक डाउन का उल्लंघन किया उसी का दुष्परिणाम आज पूरा देश भोग रहा है। संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ी, आजीविका के लिए बाहर रहने वाले लोगों में भय व्याप्त हुआ। और उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर सड़क पर निकलना उचित समझा। मानवीय संवेदनाओं का घुटता हुआ दम पूरे देश में आग की तरह फैल गया। जबकि-- 
प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’। किन्तु-
अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी।
:
जिस लोकतंत्र में नेतृत्व लाचार नजर आए, सर्वोच्च नेतृत्व क्षमा मांगे तो जनता की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
:
क्यों राज्यों ने केन्द्र की एडवाइजरी को लागू नहीं किया? क्यों इस छंटनी तथा पलायन के मुद्दे पर केन्द्र और राज्यों में समन्वय की आवश्यकता महसूस तक नहीं हुई?
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बीज बोने और फल आने में
एक काल चाहिए।
प्रतीक्षा के लिए धैर्य और
पालन-पोषण के लिए
परिश्रम और स्नेह चाहिए,
प्रार्थना चाहिए।
माननीय प्रधामंत्री जी ने पूरे देश के
नागरिकों की कोरोना विषाणु से
सुरक्षा के लिए इसी उम्मीद के साथ
लॉक डाउन के माध्यम से
22 मार्च को इसकी नींव रखी। सुप्रभातम साथियो मैं शब्दों के साथ न्याय करने की कोशिश करूँगा। समूचा विश्व इस समय #कोरोना_वायरस की चपेट में है। #विज्ञान_का_ताण्डव  कहें इसे या प्रकृति का कोप इसने मानव जीवन की गति को प्रभावित किया है। भारत सरकार और देश के कई राज्यों ने तत्परता दिखाकर देशभर में 500 संक्रमित लोगों के सामने आते ही #21_दिन_का_लॉक_डाउन घोषित कर दिया। अब पूरा देश कोरोना महामारी से युद्ध करने हेतु तैयार हो रहा था। लॉक डाउन के शुरुआती दिनों में हमने विषाणु की फैलाव श्रंखला को तोड़ा। हमारा देश इस महामारी को बहुत जल्द ही नियंत्रण में ले लेता अगर लॉक डाउन की अनुपालना पूरे अनुशासन के साथ की गई होती। किंतु इन लोगों ने इसे महज़ राजनीति से जोड़ इसका मज़ाक बनाया और लॉक डाउन का उल्लंघन किया उसी का दुष्परिणाम आज पूरा देश भोग रहा है। संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ी, आजीविका के लिए बाहर रहने वाले लोगों में भय व्याप्त हुआ। और उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर सड़क पर निकलना उचित समझा। मानवीय संवेदनाओं का घुटता हुआ दम पूरे देश में आग की तरह फैल गया। जबकि-- 
प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’। किन्तु-
अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी।
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जिस लोकतंत्र में नेतृत्व लाचार नजर आए, सर्वोच्च नेतृत्व क्षमा मांगे तो जनता की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है।
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क्यों राज्यों ने केन्द्र की एडवाइजरी को लागू नहीं किया? क्यों इस छंटनी तथा पलायन के मुद्दे पर केन्द्र और राज्यों में समन्वय की आवश्यकता महसूस तक नहीं हुई?
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