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तुम किसी को स्नेह करते हो तो कहते हो, मेरी माँ है,

तुम किसी को स्नेह करते हो तो कहते हो,
मेरी माँ है, इसलिए प्रेम करता हूं। तुम्हारे प्रेम में
'इसलिए' है। मेरी पत्नी है इसलिए प्रेम करता हूं।
मेरा बेटा है। थोड़ा समझो। तुम आज तक अपने
बेटे के लिए अपनी जान देने को तैयार थे।
तुम्हारा बेटा है। पढ़ाते थे, लिखाते थे, श्रम करते
थे, मेहनत करते थे, बड़ी आकांक्षा करते थे, बड़ा
हो, यशस्वी हो, सफल हो। और आज तुम्हें
अचानक एक पत्र हाथ में लग गया पुरानी संदूक
टटोलते हुए, जिससे पता चला कि बेटा तुम्हारा
नहीं है, तुम्हारी पत्नी किसी के प्रेम में थी,
उसका है। इसी क्षण तुम्हारा प्रेम समाप्त हो
जाएगा। और यह भी हो सकता है कि पत्र
झूठा हो, बेटा तुम्हारा ही हो। लेकिन तुम्हारा
प्रेम इसी क्षण जैसे कपूर उड़ जाए, ऐसे उड़
जाएगा। प्रेम की तो बात दूर रही, अब तुम इस
बेटे को घृ्णा करने लगोगे, तुम चाहोगे यह मर
ही जाए तो अच्छा। यह तो एक कलंक है।
अभी क्षण भर पहले यह बेटा तुम्हारा था,
तो प्रेम था। अब तुम्हारा नहीं है तो प्रेम नहीं रहा।
तुम्हारा प्रेम बड़ा सशर्त है। मेरा है तो प्रेम,
मेरा नहीं तो ्रेम नहीं।
OSHO

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