आधे अधूरे शब्द (कुछ कही अनकही caption में) #शब्द#आधे अधूरे दो शब्द.. कागज़ कलम लेकर बैठी थी,कुछ भाव घुमड़ रहे थे,पन्नो पर बिखरने को तैयार।मुझे भी जल्दी थी उनको उकेरने की।तभी कुकर की सीटी ने ध्यान भंग किया,भागी किचन की ओर ये सोचती कुछ जल तो नहीं गया?हाँ कुछ जला तो है जो पकने को रखा था।जो मन में पक रहा था उसको परे रख फिर लग गयी जो जला उसकी भरपाई करने। पुनः बैठी उमड़ते घुमड़ते विचारों को कुछ रूप देने और बज गयी घंटी दरवाज़े की।धोबी आया कपडे लेने देने।धोबी के लाये कपडे को सहेजकर रखूँ पहले,अपने शब्दों को तो फिर सहेज लूँगी ,यह सोचकर सबकुछ करीने से रखा और फिर बैठी अपनी लेखनी सहेजने। दो चार पंक्तियाँ और जुडी, मन खुश हो ही रहा था कि फिर घंटी की आवाज़ ने फिर एकाग्रचित्तता को तोड़ा। अब कौन आया? सोचती मन ही मन खीझती फिर दरवाज़े की और चली। इस बार मेरी वाचाल पड़ोसन आयी थी। सच कहूँ उनका यूँ बेवक़्त आना मुझे बिलकुल नहीं सुहाया था।पर सामाजिकता तो निभानी थी।वो मोहल्ले भर की बातों को तड़का लगा सुनाने में मशगूल और मैं सृजन की पीड़ा से जूझ रही थी। उनके जाते ही मैंने घडी की ओर देखा। मुझे प्रसव सी पीड़ा हो रही थी, व्याकुल था मन कुछ सृजन करने को पर अब समय नहीं ,शाम हो चली है ।सबके घर आने का समय हो चला। अब कल देखूंगी ,समय अगर मिला तो लिखूंगी.............. बस यूँ ही कभी कभी रह जाते हैं हमारे दो शब्द आधे अधूरे......