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रस्म मान कर व्याह रचाया अब क्यों शोग मनाते आते हैं

रस्म मान कर व्याह रचाया
अब क्यों शोग मनाते आते हैं?
अपनी वाली से बेहतर पर
पुरुषों के दिल आते हैं।

भावनाओं की शून्य देह से
सब का मन जो ऊब रहा।
आभासी जग की सरिता में
सबका ही उर डूब रहा।

ब्याह किए या हस्ताक्षर
शपत पत्र सा जीवन है।
कुछ तो दोहरा जीवन जीते
बदल रहे सब तन मन हैं।

कुछ को वंश चलाना है
ब्याह रचाना संधि पत्र सा
बेटा सबको वांछनीय है
भ्रूण मिटाना अभिमंत्र सा।

मादकता यौवन की छलके
तब तक प्रेम उमड़ता है।
जैसे जैसे समय बीतता
आपस में क्रोध घुमड़ता है।
😂😂😂😂😂

हर्षा मिश्रा
रायपुर

©harsha mishra
  #Wochaand #रूप_की_गलियाँ #nojoto