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फ़र्क घर लौटते आज मैंने, रस्ते पर नज़र फेरी । सोच रह

फ़र्क
घर लौटते आज मैंने, रस्ते पर नज़र फेरी ।
सोच रहा था क्या, होता होगा भरी दुपहरी ?
एक चौराहे पर मुन्ना, बना रहा साबुन के बुलबुले ।
दूजी तरफ चचा, बेच रहे थे चुरमुरे ।
एक भिखारी फुटपाथ पर, गा रहा था गीत ।
सोचा इन सब का शायद, मुश्किल होगा अतीत ।
या फिर मैं ही थोड़ा, स्वार्थी हूँ शायद ।
मुझे क्या पता अन्न की, क्या होती कवायद ।
एक कार में बैठा, मैं इन पर टिप्पणी करता हूँ ।
मैं खुद धूल और धूप में, निकलने से डरता हूँ ।
जो बाहर हैं वो अंदर, बस शीशों से ही देख पाते हैं ।
और अंदर के लोग, बाहर निकलने से कतराते हैं ।
हमारे सपनो में बस, इतना ही फर्क है ।
उन्हें आगे बढ़ने की चाह है, हमें पीछे हो जाने का डर है । आसान सा तर्क है, बस थोड़ा फ़र्क है ।

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फ़र्क

घर लौटते आज मैंने, रस्ते पर नज़र फेरी ।
सोच रहा था क्या, होता होगा भरी दुपहरी ?
फ़र्क
घर लौटते आज मैंने, रस्ते पर नज़र फेरी ।
सोच रहा था क्या, होता होगा भरी दुपहरी ?
एक चौराहे पर मुन्ना, बना रहा साबुन के बुलबुले ।
दूजी तरफ चचा, बेच रहे थे चुरमुरे ।
एक भिखारी फुटपाथ पर, गा रहा था गीत ।
सोचा इन सब का शायद, मुश्किल होगा अतीत ।
या फिर मैं ही थोड़ा, स्वार्थी हूँ शायद ।
मुझे क्या पता अन्न की, क्या होती कवायद ।
एक कार में बैठा, मैं इन पर टिप्पणी करता हूँ ।
मैं खुद धूल और धूप में, निकलने से डरता हूँ ।
जो बाहर हैं वो अंदर, बस शीशों से ही देख पाते हैं ।
और अंदर के लोग, बाहर निकलने से कतराते हैं ।
हमारे सपनो में बस, इतना ही फर्क है ।
उन्हें आगे बढ़ने की चाह है, हमें पीछे हो जाने का डर है । आसान सा तर्क है, बस थोड़ा फ़र्क है ।

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घर लौटते आज मैंने, रस्ते पर नज़र फेरी ।
सोच रहा था क्या, होता होगा भरी दुपहरी ?
calmkazi6439

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