अफ़साने हुए फ़क़त कागज़ी नथी वगरना وَگرنَہ हम भी थे ए'जाज़-ए-उल्फ़त कामिल मुसलसल क्लब हुए बेजार लम्हों में आदतन हम भी थे गुलजार जमीं के लिए इक शजर पूछ रहा कब्र पे आ कर मेरी किस वहम में खुदा समझ बैठे उल्फत कामिल ये दस्तूर है इश्क की अपनी ए दिवाने तुमने किस वादें पे जीस्त को लिख दिया जन्नत के परवाने खाक हो कर राख अब भी रक़्स ए सोहबत में उसके बड़े वहशत ए इश्क में निकले है जनाजे कामिल देर कर दी होश में आते आते वगरना وَگرنَہ होते हम भी अजीज़ ए शख्शियत कामिल । ©kunal kanth #broken_heart #Oneside❤Love❤ #restzone #kamil_kavi #Kunalpoetry #artistsofnojoto #kunu