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दुश्मन बन बैठे है मानव अब किसी से किसी की ना दोस्त

दुश्मन बन बैठे है मानव
अब किसी से किसी की ना दोस्ती है।।

 गांव- शहर,  नुक्कड़- नुक्कड़ पर
बस मक्कारों की बस्ती है।।

जीवन को कैसे कह दें है प्यारा
यह भी अब टूटी बिखरी - सी कश्ती है।।

मुफ़्त में अब यह बिक जाती है
जैसे रद्दी कागज़ - सी सस्ती है।।

भाई - बहन में जो प्रेम था पहले
अब वैसी कोई ना मस्ती है।।

दौलत को उपर रक्खा सबने
शायद दूजा न कोई अब हस्ती है।।

अंजली श्रीवास्तव
दुश्मन बन बैठे है मानव
अब किसी से किसी की ना दोस्ती है।।

 गांव- शहर,  नुक्कड़- नुक्कड़ पर
बस मक्कारों की बस्ती है।।

जीवन को कैसे कह दें है प्यारा
यह भी अब टूटी बिखरी - सी कश्ती है।।

मुफ़्त में अब यह बिक जाती है
जैसे रद्दी कागज़ - सी सस्ती है।।

भाई - बहन में जो प्रेम था पहले
अब वैसी कोई ना मस्ती है।।

दौलत को उपर रक्खा सबने
शायद दूजा न कोई अब हस्ती है।।

अंजली श्रीवास्तव