दो-चार दिन शोक मनाओगे फिर अपने रास्ते अपने पैर बढ़ाओगे कौन किसके लिए कब रुका है आखिर तो सबका ही सिर झुका है मुकद्दर को अपनी कौन लड़े वह देखो लाखों हैं खड़े अपनी लड़ाई लड़ते जिंदगी की मशगूल बातों में पड़ते भूल कर उस दरवाजे को जिस को पार करने को ना कोई है आतुर जाने को पर जानिब क्या कहिए बस देखते रह जाओगे दो-चार दिन शोक मनाओगे फिर अपने रास्ते ,अपने पैर बढाओगे। #मशगूल #मुकद्दर #शोक #बस #जानिब