मैं हूँ बस इंसान (check caption) धर्म के माया जाल में खो गया क्यों इंसान है? उगल रहा क्यों जातिवाद का अंगार है? मानवता जैसे बिसरी एक याद लगती है, धर्म जाती के नाम पर गलियों में गुहार लगती है, समय समय पे यह खून के तांडव रचती है, देख कर पीड़ा भारत माँ की, मन ये निहाल हो जाता है, क्यों आखिर इंसानियत भूल कर इंसान हैवान हो जाता है? शुक्र है खुदा का मेरा कोई धर्म नहीं,