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अनपढ़ चाहे कितना भी समझदार क्यों ना हो जाए, उसके ल

अनपढ़ चाहे कितना भी समझदार क्यों ना हो जाए,
उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर ही रहता है।

ईश्वर ने भी जाने कैसी मुसीबत सबके सर पर डाली है,
बचे तो बचे कैसे कोई भी आगे कुआं तो पीछे खाई है।

औरतें चाहे घर बाहर के सब काम सामंजस्य से कर लें,
रहेंगी जीवन भर घर की मुर्गी दाल बराबर के जैसी ही।

न रह गया अब रिश्तों में विश्वास कोई भी मान सम्मान,
सभी एक दूजे से थोथा चना बाजे घना बनकर रहते हैं।

करते हैं सभी न्याय की बड़ी बातें बताते हैं खुद को सही,
डरते हैं सभी दूध का दूध और पानी का पानी कौन करें।


 प्रयुक्त विलोम शब्द 
काला अक्षर भैंस बराबर 
आगे कुआं पीछे खाई 
थोथा चना बाजे घना 
घर की मुर्गी दाल बराबर
दूध का दूध पानी का पानी

#काव्यसंग्रह
अनपढ़ चाहे कितना भी समझदार क्यों ना हो जाए,
उसके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर ही रहता है।

ईश्वर ने भी जाने कैसी मुसीबत सबके सर पर डाली है,
बचे तो बचे कैसे कोई भी आगे कुआं तो पीछे खाई है।

औरतें चाहे घर बाहर के सब काम सामंजस्य से कर लें,
रहेंगी जीवन भर घर की मुर्गी दाल बराबर के जैसी ही।

न रह गया अब रिश्तों में विश्वास कोई भी मान सम्मान,
सभी एक दूजे से थोथा चना बाजे घना बनकर रहते हैं।

करते हैं सभी न्याय की बड़ी बातें बताते हैं खुद को सही,
डरते हैं सभी दूध का दूध और पानी का पानी कौन करें।


 प्रयुक्त विलोम शब्द 
काला अक्षर भैंस बराबर 
आगे कुआं पीछे खाई 
थोथा चना बाजे घना 
घर की मुर्गी दाल बराबर
दूध का दूध पानी का पानी

#काव्यसंग्रह