पहिले जईसन अब कहां रहा होली उ हुड़दंग और अबीर गुलाल के टोली चार दिन पहिले ही बन जात रहा माहौल पुरान कपड़ा पहिने मिल जात रहे दुय चार बकलोल अब तौ जव कहूं केहूं का देव रंग लगाए तो होई जात है कायं काय ठाय ठाय फिर दूसरे दिन कचहरी मा मुकदमा विचारत हैं मोहल्ला मां भी सब एक दूसरे के घर निहारत हैं पहिले वै आवै तब हम जाई - वै फेंकै अबीर तो हम गुलाल लगाई पहिले होली शाम के रहत रहा इंतजार पहिन के नवा कपड़ा दावत के भरमार सबके घर के गुझिया खाए के मुंह बिचकावे पापड़ मा सूजी और साबूदाना के चुनाव करावे अब तो सबके यहां वहै रेडीमेड गुझिया जोन है शर्मा जी के हुवां वहै वर्मा जी के हियां अब तो बस व्हाट्सएपवे पर देत है रंग बहाय उ होली के याद बहुत आवत है भाय देवियों और सज्जनों प्रणाम एवं प्रिय ठलुआ वृंद बात हो होली की और अवध की बात ना हो या अवधी रस ना छेड़ा जाए तो आनंद अधूरा ही रह जाता है। इस कविता में इस्तेमाल की गई भाषा बोलचाल की अवधी भाषा है इसलिए अगर कोई त्रुटि हो जाए तो कृपया माफ करिएगा वरना बुरा ना मानो होली तो है ही। कविता का गान करते हुए आनंद लीजिए। आज की तरह पहले होली का दिन नहीं होली किस हफ्ते पड़ रही है यह पूछा जाता था। मगर समय की गति के साथ सब कुछ बदल ही जाता है। Happy Holi और हां जिन्हें रंग से परहेज़ है उन्हें कृपया कर के रंग न लगाएं मिट्टी में पटक पटक कर होली की शुभकामनाएं दे। #yqbaba #yqbabuaa #holi #अवधी #मस्ती #yqdidi #होली #bestyqhindiquotes