ना जाने वो कौनसा पल था दस्तक हुई उनकी इस विरान दिल में महक गई सांसें बहक गया मन चांदनी बिखर गई सारी महफिल में रेशम से बाल उस पर सुर्ख गाल गोता लगा रहे थे देखते ही देखते उनकी नशीली नैनों की झील में नर्म गुलाबी होठों का कंवल सा खिल जाना उस पर उनके चमकते दांतों का बतियाना गजब ढा गया अनजान बन जिंदगी में आना नशा उनको कहें या कहें शराब को दोनों का ही काम अपना महबूब बनाना महबूब बनाना