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गाँव की गलियों में बीता है, मेरा अल्हड़ सा सारा बच

गाँव की गलियों में बीता है, मेरा अल्हड़ सा सारा बचपन।
रहता हूँ शहर में, पर बसता है आज भी गाँव में मेरा मन।

लहलहाती थी खेतों में धान की बाली, चहुँ ओर थी हरियाली।
मन को मोहती थी उषा की लाली, दिखती थी बस खुशहाली।

भूलता नहीं उन गलियों में खेलना और उस उम्र का भोलापन।
कैसे भूल जाऊँ मैं सोंधी मिट्टी की खुशबू और चूल्हे की रोटी।

 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें..🙏

💫Collab with रचना का सार..📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को रचना का सार..📖 के प्रतियोगिता :- 146 में स्वागत करता है..🙏🙏

*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।
गाँव की गलियों में बीता है, मेरा अल्हड़ सा सारा बचपन।
रहता हूँ शहर में, पर बसता है आज भी गाँव में मेरा मन।

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मन को मोहती थी उषा की लाली, दिखती थी बस खुशहाली।

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