हे श्याम तुम क्या जानों विरह की वेदना जो तन लागे वो मन जाने तुम क्या जानों पीर पराई..?क्षण क्षण मुझे सताये कितना तुम क्या जानों व्यथा मेरी हे श्याम..? तुमको तो अपनी बंसी ही प्यारी मेरी स्मरणता तो तुमको होती नहीं, काश हो एक जन्म ऐसा भी कि तुम बनों राधा मैं बनूँ श्याम तब तुम समझों मेरे मन की व्याकुलता, नीर बहे नयनों से मेरे कितने तुमको मैं क्या अनुभूति कराऊँ..?रात दिन मैं श्याम-श्याम दोहराऊँ,तुमको होता न स्मरण मेरा कभी, वो अर्ध चन्द्र सी घटती बढ़ती स्मरणता तुम्हारी सारांश में तुमको कैसे समझाऊँ मैं..? मन ये चाहे पँछी बन तुम तक ये संदेशा पहुँचा कर तुमको ये अनुभूति कराऊँ मगर तुमको न एक क्षण भी न होता स्मरण मेरा, तुमको अपने मन की पीड़ा कैसे दिखाऊँ मैं हे श्याम..? ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1055 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।