मुल्क में दहशतगर्दी पैदा कर दी है हमारी सहिष्णुता ने इस कदर इससे अच्छे तो हम कट्टर होते कम से कम मुल्क अमन में तो होता ना जाने क्यों ये सारा इल्ज़ाम हम सनातन वालों पर ही आता है काश कि ये दहशतगर्द ना अल्लाहू अकबर के जुमले वाला होता हमारी खुदगर्जी ने हमें अपने ही मुल्क में खानाबदोश बना दिया है वरना कश्मीर के पंडितों की तरह रातोंरात बेघर कर ना निकाला होता कब तक ये जुमला हमें ही पढ़ाया जाएगा कि भाईचारा कायम करें काश कि हमारे भगवान को उसकी जन्मभूमी से ना निकाला होता क्यों इक लुटेरे के नाम के लिए वो हमसे झगड़ता रहता है हर वक्त काश कि किसी रोजेदार ने राम मंदिर की नींव का पत्थर डाला होता कब तक दबा कर रखेगा अपने अंदर के गुब्बार को "स्वरूप" यूं ही काश कि मंदिर और मातृभूमि की तरफ उठने वाली आँख को नौंच डाला होता सहिष्णुता की कीमत