शिला ...... संलग्न की आसामी सूत से बंधा हुआ आदम भीतरी मन मे नही रहा रोष का कनिष्ठ उद्दम शिला जैसी चित्त रच लिया उसने मगरूर मे प्रतियोगिता हो रही है कौन है सर्वोत्तम क्रूर मे करते होंगे स्वामी भी अचरजमयी चिंतन सुसज्जित किया कर से जो अमूल्य रत्न वो तो रद्दोबदल हो चुका है मलिन शिला मे आत्मग्लानि होगा देख बदलती कपोला मे शिला की मजबूती को उसने अपना ढाल बना लिया अपने आप को अपने आप मे खिलवाड बना लिया तुच्छ सिफ़त तक ही सीमित है उसकी मेधा इसलिए सच का कर पा रहा है सिर्फ अद्ददा शिला की सख़्त परत से जकड़कर दानव को जिंदा रख अपने आप को मारकर दया भावना सब सदैव भूल गया है ईश्वर के वादे को निर्दयी ने तोड़ दिया है – Vikas Gupta ©Vikas Gupta #wallpaper