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समाज का डर समाज का रंग जिससे बँधा है संसार खुद के

समाज का डर समाज का रंग
जिससे बँधा है संसार खुद के ही अंदर
कभी एक रौशनी को छू न पाए 
जीते जी हम खुद को जी न पाए
कही छूट जाये कितने ही पीछे सबेरे
बस यु ही जी रहे हे सब पी के घुट अंधेरे
इस समाज के डर ने सोच की उड़ान रोक दी
इस समाज के डर ने शब्दों की आवाज मोड़ दी
समाज के इस डर से कइयों ने तो
खुद की उड़ान को बीच में ही छोड़ दी

किसी ने अपनी एक पहचान
                     पीछे ही छोड़ दी #samaaj #cast
समाज का डर समाज का रंग
जिससे बँधा है संसार खुद के ही अंदर
कभी एक रौशनी को छू न पाए 
जीते जी हम खुद को जी न पाए
कही छूट जाये कितने ही पीछे सबेरे
बस यु ही जी रहे हे सब पी के घुट अंधेरे
इस समाज के डर ने सोच की उड़ान रोक दी
इस समाज के डर ने शब्दों की आवाज मोड़ दी
समाज के इस डर से कइयों ने तो
खुद की उड़ान को बीच में ही छोड़ दी

किसी ने अपनी एक पहचान
                     पीछे ही छोड़ दी #samaaj #cast