प्रकृति की खामोशी को हम कमजोरी मान लिए दिन प्रतिदिन इसका दोहन कर कुछ छीन लिए कुछ लोप किए।। न जाने क्या-क्या अनीति किए नीर समीर धरा को हमने, दूषित मन से विच्छेद किए।। कब तक सहे ये कुरीति हमारी हम जो मन से कुंठित हैं । यह धरा धैर्य जब खो देगी तब मानवता असहाय है फिर मानव भी अवलुंठीत है।। ...सैम #natureangry