वो बेचारी कंटीली झाड़ियों के पीछे सुखे घास में छिपकर बैठी थी। कुछ लड़के बेसब्री से उसको ढुंढे जा रहे थे। "इक दूसरे से पुछते मिली क्या?" फिर जवाब आता "नहीं यार नहीं मिल रही। यार लग रहा, अब नई बॉल लेनी पड़ेगी।" बिना बॉल मैच कैसे होता? अंतोगत्वा आपसी सहमति से फैसला हुआ "अच्छा चलो टॉस करते हैं जो जीतेगा उसकी बैटिंग जो हारेगा उसकी बॉलिंग। और जिसको बॉलिंग करने मिलेगा उसी टीम को नया बॉल लाना होगा।" तब तक एक लड़के का पांव उस गेंद पर पड़ा। और वो चिल्लाया "बॉल मिल गई ... " और फिर दोनों टीमों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। फिर शुरू हुआ, गांव के बंजर पड़ रहे खेत में 'क्रिकेट टूर्नामेंट'। गांव की इस टूर्नामेंट की खास बात है इसमें दर्शकों की संख्या नगण्य होती है और चयनकर्ताओं की संख्या भी शून्य। यहां क्रिकेट मात्र इक खेल होता है लेकिन विरोधी समूह से जीतने की प्रतिस्पर्धा भी रहती है। वैसे तो इन लड़कों में कितने सचिन , धोनी, जहीर और कुंबले छिपे होते हैं। मगर इनका सपना कभी क्रिकेटर बनने का नहीं होता। या यों कहें इनके सपनों पर इक परत लग जाता है आत्मनिर्भर बनने का। #village #क्रिकेट #Cricket #Tournament #आत्मनिर्भर #ShortStory #Barrier