व्याकुल धरती व्याकुल सागर अंबर व्याकुल होता है, मानवता व्याकुल होती बिलख बिलख मन रोता है। आंचल का सारा जल धरती अपनीं आँखों में भरती है, वांणी में करुणा होती जब धरती बातें करती है। सूख रहे हैं नदियाँ झरने सूख रही हैं डाली सब, कंकरीट का घना है जंगल सूख रही हरियाली सब। फिर भी इतना दोहन करते धरती आह न भरती है, वांणी में करुणा होती जब धरती बातें करती है। धरती पर ही जन्में हैं हम जीवन इसी किनारे है, इसमें गर्भित खनिज के लिये बन गये हम हत्तयारे हैं। ह्रदय में पीड़ा होती है जब धरती तिल तिल मरती है, वांणी में करुणा होती जब धरती बातें करती है। #Earth