प्रवाह शिखर पहाडों के, गहराइयाँ समुन्दर की, गति हवाओं की, मौन व्याप्त आकाश में, सब हो रहा प्रवाह में.... सब हो रहा प्रवाह में.... हरियाली वृक्षों की, पुष्प खिले राह पर, सजे खड़े घास पात, काँटे भी अलंकृत, सब हो रहा प्रवाह में.... सब हो रहा प्रवाह में.... उठी तरंग भीतर में, चली गति पाकर, कभी राग में, कभी द्वेष में, कभी भूत में, कभी भविष्य में, ऊर्जा स्रोत से ले, सब हो रहा प्रवाह में... सब हो रहा प्रवाह में... वह जो निर्लिप्त है, सशक्त होकर भी, मन से न संलिप्त है, साक्षी हो, देखे तरंग को, द्रष्टा अपने आप हो, सब हो रहा प्रवाह में... सब हो रहा प्रवाह में... # Pravah