लिपटे हैं रुई के फ़ोहे में कुछ इस क़दर, लगते है मानों अजीज हमसफ़र, ये सर्द हवाओं का रुख़ मोड़ दो, सहा नही जाता अब हमसें ये बेदर्दी छोड़ दो, देख मैं कैसे हूँ बह रही जैसे हो आँब-ए-रवाँ, चल चलते हैं ऐसी अंजुमन में दिलकश नज़ारे हो जहाँ, क्या तुम अग्यार हो जो नही करते प्यार का इज़हार हो, हम आपके ही तो हमनशीं हैं अब कह दो कि तुम मुझे स्वीकार हो। 🎀 Challenge-236 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 50 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।