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वो दौर भी अजीब था, आगाज़ नई करनी थी, पर मन बेचैन

वो दौर भी अजीब था, 
आगाज़ नई करनी थी,
पर मन बेचैन था। 
सामने- बस दौड़ने का शोर था,
पिछे- लिखे पन्नो के 
परिणाम का आतंक था।
मन तो बस उदरघुन मे बंद था।
क्या होगा आगे इसी बात का डर था।
कदम पर बढाया मैनें ,
चलना अब सिख लिया है।
खौफ़ तो हा अब भी है।
पर अब लड़ना सिख लिया है।
कोशिश है आगे बढने की,
पर रास्ते कहा आसान है।
पर उम्मीद है कुछ करने की,
और हौसलो मे बुलंदिया है।।

©Nidhi 
  wo daurr ##thattime

#WalkingInWoods
वो दौर भी अजीब था, 
आगाज़ नई करनी थी,
पर मन बेचैन था। 
सामने- बस दौड़ने का शोर था,
पिछे- लिखे पन्नो के 
परिणाम का आतंक था।
मन तो बस उदरघुन मे बंद था।
क्या होगा आगे इसी बात का डर था।
कदम पर बढाया मैनें ,
चलना अब सिख लिया है।
खौफ़ तो हा अब भी है।
पर अब लड़ना सिख लिया है।
कोशिश है आगे बढने की,
पर रास्ते कहा आसान है।
पर उम्मीद है कुछ करने की,
और हौसलो मे बुलंदिया है।।

©Nidhi 
  wo daurr ##thattime

#WalkingInWoods
shukriyashahi2893

Nidhi

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