रस्ता और गाँव न पहले से लोग रहे, न पहले सा गाँव रहा। बहती गंगा प्यार प्रीत की, अब न पहले सा भाव रहा।। हर एक गाँव में भाई, बड़ी चौपालें होती थी। सब लोगों की आपस में,कुशल क्षेम की बातें होती थी।। एक दूजे के सुख दुःख में सब हाथ बटाया करते थे। करता था कोई गलत काम यदि,तो उसको भी समझाया करते थे।। डेड हाथ का घूंघट करती पहले, अब खुले मुह से डोल रही। सासु पाय लागू की जगह,आज हैलो मौम ये बोल रही।। हुए गुलाम पश्चिम के सब,न मर्यादा न मान रहा। बहती गंगा प्यार प्रीत की अब न पहले सा भाव रहा।। मात पिता के फटे हुये कपड़े,बेटा फैसन में घूम रहा। घर में नहीं है खाने को खाना,बेटा यारा संग झूम रहा।। अच्छा काम करे कोई अब,उस पर दांत पीसते हैं। कोई बढ न जाये आगे,आपस में टांग खीचते हैं।। पहले थी माँ बहनों की इज्जत, अब न पहले सा आव रहा। बहती गंगा प्यार प्रीत की, न पहले सा भाव रहा।। कवि रामदास गुर्जर मेरा गाँव भाग - 1 #कवि#रामदास #गुर्जर