कुछ सुबह की बातें चाय का ठेला लगता है हर नुक्कड़ पर पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग और गाय मदमस्त लेखक है एक कोने में सोता रात को कुछ थका सा था वहीँ दूसरी ओर लफंदर लौंडे ठिठोली करते हैं किसी अनसुनी बात पर कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी गिनी चुनी खाली थैलियाँ और कुछ प्लास्टिक के छोटे खिलोने बटोर रही वो बूढी अम्मा और कहीं दूर से घंटियों की टनटनाहट आती है मेरे कानो में सुबह की पूजा चल रही होगी उस घर में कुछ ऐसी सुबह होती है मेरे शहर में जैसे रात का साया ही न रहा हो कभी (READ FULL POETRY BELOW) कुछ सुबह की बातें... चाय का ठेला, लगता है हर नुक्कड़ पर । पैदल सड़क पर घूमते हैं लोग, और गाय मदमस्त । लेखक है एक कोने में सोता,